वृंदावन के कृष्ण जी को क्यों कहा जाता है बांके बिहारी

वृंदावन के कृष्ण जी को क्यों कहा जाता है बांके बिहारी


एकाकार प्रतिमा का नाम बांके बिहारी
बांके बिहारी भगवान कृष्ण राधा का एकाकार विग्रह रूप है। इस स्वामी हरिदास जी के अनुरोध पर भगवान कृष्ण और राधा ने ये रूप लिया था। उनके इस रूप को स्वामी हरिदास जी ने ही बांके बिहारी नाम दिया। माना जाता है इस विग्रह रूप के जो भी दर्शन करता उसकी सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं।

ऐसे प्रकट हुए थे बांके बिहारी
मान्यता है कि संगीत सम्राट तानसेन के गुरू स्वामी हरिदास जी भगवान श्री कृष्ण को अपना आराध्य मानते थे। उन्होंने अपना संगीत कन्हैया को समर्पित कर रखा था। वे अक्सर वृंदावन स्थित श्रीकृष्ण की रासलीला स्थली में बैठकर संगीत से कन्हैया की आराधना करते थे। जब भी स्वामी हरिदास श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन होते तो श्रीकृष्ण उन्हें दर्शन देते थे। एक दिन स्वामी हरिदास के शिष्य ने कहा कि बाकी लोग भी राधे कृष्ण के दर्शन करना चाहते हैं, उन्हें दुलार करना चाहते हैं। उनकी भावनाओं का ध्यान रखकर स्वामी हरिदास भजन गाने लगे।

जब श्रीकृष्ण और माता राधा ने उन्हें दर्शन दिए तो उन्होंने भक्तों की इच्छा उनसे जाहिर की। तब राधा कृष्ण ने उसी रूप में उनके पास ठहरने की बात कही। इस पर हरिदास ने कहा कि कान्हा मैं तो संत हूं, तुम्हें तो कैसे भी रख लूंगा, लेकिन राधा रानी के लिए रोज नए आभूषण और वस्त्र कहां से लाउंगा। भक्त की बात सुनकर श्री कृष्ण मुस्कुराए और इसके बाद राधा कृष्ण की युगल जोड़ी एकाकार होकर एक विग्रह रूप में प्रकट हुई।बांके बिहारी का मतलब 'वन के विहारी' है।

banke bihari images


बांके बिहारी को अगर हिंदी  में अनुवाद करें तो अर्थ कुछ इस प्रकार निकलता है ,

बन या वन का अर्थ है वन का भूमि या जिसको हमलोग जंगल , कृष्णा जी ने अपनी बचपन और युवाकाल का कुछ अंश वन जैसे छेत्रो में बिताया था ।

विहारी का अर्थ है वहां रहने वालों में से एक।

बांके बिहारी का अर्थ है वन क्षेत्र में निवास करने वाला।

भगवान श्री कृष्ण वृंदावन के जंगल में अपनी लीलाएं करते थे, इसलिए उन्हें 'वन के विहारी' या 'बांके बिहारी' कहा जाता है।

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