1.अर्गला स्तोत्र के लाभ हिंदी में
इस स्त्रोत का जप करने से सभी समस्याओं का निवारण होता है। देवी का स्तोत्र पाठ सच्चे मन से करने पर हर इक्षा पूरी होती है। अर्गला स्तोत्र के यूं तो समस्त मंत्र ही सिद्ध हैं। अर्गला स्त्रोत्र के सभी मारण और वशीकरण मंत्र हैं।अर्गला स्तोत्र के सभी मंत्रों में हम देवी भगवती से कामना करते हैं कि हमको रूप दो, जय दो, यश दो और शत्रुओं का नाश करो।
अर्गला स्तोत्र से रूप का लाभ
अर्गला स्त्रोत का जाप करने से सुन्दर रूप की प्राप्ति होती है। रूप का मतलब आपक केवल सौंदर्य के सन्दर्भ में न लें बल्कि रूप से तात्पर्य है की इंसान की पूर्ण ख़ूबसूरती जो की बाहरी और भीतरी ख़ूबसूरती के मेल से प्राप्त होता है। आपलोग गौर करें इस मंत्र में कहीं भी रंग का विवरण नहीं किया गया है।
अर्गला स्तोत्र से यश की प्राप्ति होती है
अर्गला स्तोत्र से यश की प्राप्ति होती है। आप जहा कहीं रहे अपने कर्मभूमि में आपको यश की प्राप्ति होगी। आपको केवल माता के इस मंत्र को सच्चे निःस्वार्थ मन्न से जाप करना है इसके पश्चास्त माता आपकी मनोकामना खुद पूर्ण करेंगी।
अर्गला स्तोत्र से जय की प्राप्ति होती है
जय प्राप्ति की इक्षा हर एक व्यक्ति के मन्न में होती है। अगर आप नियमित रूप से कर्म कर रहे है और आपको जय यानि विजय नहीं मिल रही तो जो भी व्यवधान आपके कार्य में आ रहे है इस मंत्र के नियमित जाप से दूर हो जाएंगे। चाहे कर्मभूमि हो या युद्धभूमि सभी जगह आपको जय की प्राप्ति होगी। इस मंत्र से जय की प्राप्ति शीघ्र होती है।
मनुष्य जिन जिन कार्यों की अभिलाषा करता है, वे सभी कार्य अर्गला स्तोत्र के पाठ मात्र से सारे व्यवधान दूर हो जाते हैं। समस्त कार्यों में "विजयश्री" इस पाठ मात्र को करने से प्राप्त होती है।
शत्रुओं का नाश और नकारात्मक प्रभाव दूर होते है
शत्रु पर विजय पाने के लिए यह स्तोत्र अमोघ है। धर्म के लिए यह स्त्रोत्र विजय की प्राप्ति करती है। अरगला स्तोत्रम का नियमित जाप आपको अपने जीवन से सभी नकारात्मकता और बुराइयों को दूर रखने में मदद कर सकता है।इसका जाप आपको हमेशा साकारात्मक रखता है।
2.अर्गला स्तोत्र हिंदी में | Argala Stotra in Hindi
ॐ नमश्चण्डिकायै॥
मार्कण्डेय उवाच
ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥1॥
भावार्थ : ॐ चंडिका देवी को नमस्कार है। मार्कण्डेय जी कहते हैं – जयन्ती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा – इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके! तुम्हें मेरा नमस्कार हो।
जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते॥2॥
भावार्थ : देवी चामुण्डे ! तुम्हारी जय हो। सम्पूर्ण प्राणियों की पीड़ा हरने वाली देवी! तुम्हारी जय हो। सब में व्याप्त रहने वाली देवी! तुम्हारी जय हो। कालरात्रि! तुम्हें नमस्कार हो।।
मधुकैटभविद्राविविधातृवरदे नमः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥3॥
भावार्थ: मधु और कैटभ को मारने वाली तथा ब्रह्माजी को वरदान देने वाली देवी ! तुम्हे नमस्कार है। तुम मुझे रूप (आत्मस्वरूप का ज्ञान) दो, जय (मोह पर विजय) दो, यश (मोह-विजय और ज्ञान-प्राप्तिरूप यश) दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।
महिषासुरनिर्णाशि भक्तानां सुखदे नमः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥4॥
भावार्थ : महिषासुर का नाश करने वाली तथा भक्तों को सुख देने वाली देवी! तुम्हें नमस्कार है। तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।
रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥5॥
भावार्थ : रक्तबीज का वध और चण्ड-मुण्ड का विनाश करने वाली देवी! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।
शुम्भस्यैव निशुम्भस्य धूम्राक्षस्य च मर्दिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥6॥
भावार्थ: शुम्भ और निशुम्भ तथा धूम्रलोचन का मर्दन करने वाली देवी ! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।
Argala Stotram in Hindi
वन्दिताङ्घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥7॥
भावार्थ : सबके द्वारा वन्दित युगल चरणों वाली तथा सम्पूर्ण सौभग्य प्रदान करने वाली देवी! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।
अचिन्त्यरुपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥8॥
भावार्थ : देवी ! तुम्हारे रूप और चरित्र अचिन्त्य हैं। तुम समस्त शत्रुओं का नाश करने वाली हो। तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।
नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥9॥
भावार्थ : पापों को दूर करने वाली चण्डिके! जो भक्तिपूर्वक तुम्हारे चरणों में सर्वदा (हमेशा) मस्तक झुकाते हैं, उन्हें रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।
स्तुवद्भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि१॥10॥
भावार्थ : रोगों का नाश करने वाली चण्डिके! जो भक्तिपूर्वक तुम्हारी स्तुति करते हैं, उन्हें तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।
चण्डिके सततं ये त्वामर्चयन्तीह भक्तितः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥11॥
भावार्थ : चण्डिके ! इस संसार में जो भक्तिपूर्वक तुम्हारी पूजा करते हैं उन्हें रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥12॥
भावार्थ : मुझे सौभाग्य और आरोग्य (स्वास्थ्य) दो। परम सुख दो, रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।
विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥13॥
भावार्थ : जो मुहसे द्वेष करते हों, उनका नाश और मेरे बल की वृद्धि करो। रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।
Argala stotram mantra with hindi meaning
विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥14॥
भावार्थ : देवी ! मेरा कल्याण करो। मुझे उत्तम संपत्ति प्रदान करो। रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।
सुरासुरशिरोरत्ननिघृष्टचरणेऽम्बिके।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥15॥
भावार्थ : अम्बिके! देवता और असुर दोनों ही अपने माथे के मुकुट की मणियों को तुम्हारे चरणों पर घिसते हैं। तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।
विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तं जनं कुरु।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥16॥
भावार्थ : तुम अपने भक्तजन को विद्वान, यशस्वी, और लक्ष्मीवान बनाओ तथा रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।
प्रचण्डदैत्यदर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥17॥
भावार्थ : प्रचंड दैत्यों के दर्प का दलन करने वाली चण्डिके ! मुझ शरणागत को रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।
Argala stotram in hindi
चतुर्भुजे चतुर्वक्त्रसंस्तुते परमेश्वरि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥18॥
भावार्थ : चतुर्भुज ब्रह्मा जी के द्वारा प्रशंसित चार भुजाधारिणी परमेश्वरि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।
कृष्णेन संस्तुते देवि शश्वद्भक्त्या सदाम्बिके।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥19॥
भावार्थ : देवी अम्बिके ! भगवान् विष्णु नित्य-निरंतर भक्तिपूर्वक तुम्हारी स्तुति करते रहते हैं। तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।
हिमाचलसुतानाथसंस्तुते परमेश्वरि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥20॥
भावार्थ : हिमालय-कन्या पार्वती के पति महादेवजी के द्वारा होने वाली परमेश्वरि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।
इन्द्राणीपतिसद्भावपूजिते परमेश्वरि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥21॥
भावार्थ : शचीपति इंद्र के द्वारा सद्भाव से पूजित होने वाल परमेश्वरि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो
देवि प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पविनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥22॥
भावार्थ : प्रचंड भुजदण्डों वाले दैत्यों का घमंड चूर करने वाली देवी ! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश कर
देवि भक्तजनोद्दामदत्तानन्दोदयेऽम्बिके।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥23॥
भावार्थ : देवी अम्बिके ! तुम अपने भक्तजनों को सदा असीम आनंद प्रदान करती हो। मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥24॥
भावार्थ : मन की इच्छा के अनुसार चलने वाली मनोहर पत्नी प्रदान करो, जो दुर्गम संसार से तारने वाली तथा उत्तम कुल में जन्मी हो।
इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रं पठेन्नरः।
स तु सप्तशतीसंख्यावरमाप्नोति सम्पदाम्॥25॥
भावार्थ : जो मनुष्य इस स्तोत्र का पाठ करके सप्तशती रूपी महास्तोत्र का पाठ करता है, वह सप्तशती की जप-संख्या से मिलने वाले श्रेष्ठ फल को प्राप्त होता है और साथ ही वह प्रचुर संपत्ति भी प्राप्त कर लेता है।
॥ इति देव्या अर्गलास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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