Lyrics of Karpur Gauram Karunavtaram in Sanskrit:
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि ।।
कर्पूरगौरं मंत्र का अर्थ
जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है ।
Shiva is praised with this mantra. Lord Shiva is praised lyrically in every word of this supernatural mantra.
Meaning of Each Lyrical Word of Karpur Gauram Karunavtaram.
इस मंत्र अर्थ का व्रिस्तित अर्थ इस प्रकार है |
कर्पूरगौरं- कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले ।
करुणावतारं- करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं ।
संसारसारं- समस्त सृष्टि के जो सार हैं ।
भुजगेंद्रहारम्- इस शब्द का अर्थ है जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं ।
सदा वसतं हृदयाविन्दे भबंभावनी सहितं नमामि- इसका अर्थ है कि जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है ।
अर्थात- जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है ।
Karpur Gauram Karunavtaram Lyrics in English:
इस मंत्र से शिवजी की स्तुति की जाती है।इस अलौकिक मंत्र के प्रत्येक शब्द में भगवान शिवजी की स्तुति की गई हैं।
किसी भी मंदिर में या हमारे घर मेंजब भी पूजन कर्म होते हैं तो वहां कुछ मंत्रों का जप अनिवार्यरूप से देवी-देवताओं के मंत्र अलग-अलग हैं, लेकिन जब भी आरती पूर्ण होती हैतो यह मंत्र विशेष रूप से बोला
हिंदू धर्म को मानने वाले श्रद्धालु मंदिरों में या घरों में होनी वाली दैनिक पूजा विधान में देवी देवताओं की आरती पूर्ण होने के बाद कुछ वैदिक मंत्रों का उच्चारण अनिवार्य रूप से करते है । सभी देवी-देवताओं की स्तुति के मंत्र भी अलग-अलग हैं, लेकिन जब भी यज्ञ या पूजा समपन्न होता है, तो उसके बाद भगवान की आरती की जाती और आरती के पूर्ण होते ही इस दिव्य व अलौकिक मंत्र को विशेष रूप से बोला जाता है ।
देवी देवताओं की आरती के बाद, क्यों बोलते हैं कर्पूरगौरं करुणावतारं मंत्र
आखिर आरती के बाद यही मंत्र क्यों
किसी भी पूजा या देवी-देवता की आरती के बाद कर्पूरगौरम् करुणावतारं मंत्र ही क्यों बोला जाता है,आइये इसका कारण जानते है । ऐसा माना जाता है की भगवान शिव की ये स्तुति शिव-पार्वती विवाह के समय भगवान् विष्णु के द्वारा गाई गयी है । उस समय भगवन शिव के स्वरुप को लोग बहुत भयावह मानते थे। ये स्तुति बताती है कि उनका स्वरुप बहुत दिव्य और सुंदर है । भगवान शिव को सृष्टि का अधिपति माना गया है, वे मृत्युलोक के देवता हैं, उन्हें पशुपतिनाथ भी कहा जाता है, पशुपति का अर्थ है संसार के जितने भी जीव हैं (मनुष्य सहित) उन सब का अधिपति । ये स्तुति इसी कारण से गाई जाती है कि जो इस समस्त संसार का अधिपति है, वो हमारे मन में वास करे, शिव श्मशान वासी हैं, जो मृत्यु के भय को दूर करते हैं । ऐसे शिवजी हमारे मन में शिव वास कर, मृत्यु का भय दूर करें । महामृत्युंजय मंत्र मंत्र के साथ -साथ इस मंत्र का गान पूजन के बाद बहुत ज्यादा फलदायक होता है।
Related Articles
0 Comments