महाभारत में दानवीर कर्ण एक ऐसा पात्र है जिनके साथ जन्म के साथ ही अन्याय होना शुरू हो गया था. क्षत्रिय राजवंश में जन्म लेने के बाद भी उन्हें आजीवन सूतपुत्र माना गया. जिसके कारण उन्हें कई बार अपमानित भी होना पड़ा. कर्ण की मृत्यु के बाद कुंती ने पांडव पुत्रों को अपने जीवन का सबसे बड़ा रहस्य बताया कि कर्ण उनकी पहली संतान थे, पांडवों में सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर को जीवन में पहली बार अपनी माता पर क्रोध आया, जिन्होंने इतने वर्षों तक ये राज छुपा का रखा था. पांचों भाईयों को जब ये पता चला कि सूर्यपुत्र कर्ण उनके बड़े भाई थे तो सभी भाई की मृत्यु का शोक मनाने लगे.
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महाभारत का महायुद्ध 18 दिनों तक चला इस युद्ध में सतरहवें दिन कौरवों के सेनापति कर्ण को वीरगति प्राप्त हुई जब अर्जुन ने निहत्थे कर्ण पर दिव्यास्त्र का प्रयोग कर दिया। अर्जुन के दिव्यास्त्र से कर्ण की मृत्यु हो गई लेकिन यह पूरा सत्य नहीं है। दरअसल इसके पीछे 7 ऐसे कारण हैं जो नहीं होते तो कर्ण का अर्जुन के हाथों मरना असंभव होता।
श्री कृष्ण ने सुझाया मार्ग
कर्ण का अंतिम संस्कार
कर्ण की मृत्यु के बाद उसका अंतिम संस्कार भूमि पर नहीं किया गया था। उन्होंने श्रीकृष्ण से यह वरदान मांगा था कि मृत्यु के पश्चात मेरी देह का ऐसे स्थान पर अंतिम संस्कार कीजिए जहां कोई पाप न हुआ हो।
संपूर्ण धरती पर ऐसे स्थान की खोज की गई लेकिन कोई जगह ऐसी नहीं मिली जहां पाप न हुआ हो। सिर्फ कृष्ण के हाथ ही ऐसे स्थान थे जहां कोई पाप नहीं हुआ था। इसलिए कर्ण का अंतिम संस्कार कृष्ण के हाथों पर दुर्योधन के सहयोग से किया गया।
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