जब अर्जुन पुत्र इरावन ने अकेले जब मचा दिया था महाभारत में कोहराम

 जब अर्जुन पुत्र इरावन ने अकेले जब मचा दिया था महाभारत में कोहराम

महाभारत के भीष्म पर्व के 83वें अध्‍याय के अनुसार महाभारत के युद्ध के सातवें दिन अर्जुन और उलूपी के पुत्र इरावान का अवंती के राजकुमार विंद और अनुविंद से अत्यंत भयंकर युद्ध हुआ। इरावान ने दोनों भाइयों से एक साथ युद्ध करते हुए अपने पराक्रम से दोनों को पराजित कर दिया और फिर कौरव सेना का संहार आरंभ कर दिया।

भीष्म पर्व के 91वें अध्याय के अनुसार आठवें दिन  सुबलपुत्र शकुनि और कृतवर्मा ने पांडवों की सेना पर आक्रमण किया। कौरव सेनाओ ने अर्जुन पुत्र को चारो और से घेर लिया। अर्जुन के बलवान पुत्र इरावान ने हर्ष में भरकर रणभूमि में कौरवों की सेना पर आक्रमण कर उनके आक्रमण का उत्तर दिया। इरावन  ने अकेले ही उन महारथियों का सामना किया। 
 

इरावान द्वारा किए गए इस अत्यंत भयानक युद्ध में, कौरवों की घुड़सवार सेना नष्ट हो गयी।


तब शकुनि के छहों पुत्रों ने इरावान को चारों ओर से घेर लिया। इरावान ने अकेले ही लंबे समय तक इन छहों से, वीरता पूर्वक युद्ध कर उन सबका वध कर डाला। यह देख महारथी दुर्योधन भयभीत हो उठा और वह भागता हुआ हुआ राक्षस ऋष्यश्रृंग के पुत्र अलम्बुष के पास गया। अलम्बुष  पूर्वकाल में बकासुर का  वध के कारण, भीमसेन का शत्रु बन बैठा था। ऐसे में अल्बुष ने इरावस से युद्ध किया।
 

इरावान और अलम्बुष का अनेक प्रकार से माया-युद्ध हुआ। इरावन ने अलम्बुष से माया युद्ध आरम्भ किया।  अलम्बुष राक्षस का जो  अंग कटता, वह पुनः नए सिरे से उत्पन्न हो जाता था। युद्धस्थल में अपने शत्रु को प्रबल हुआ देख ,उस राक्षस ने अत्यंत भयंकर एवं विशाल रूप धारण करके, अर्जुन के वीर एवं यशस्वी पुत्र इरावान को बंदी बनाने का प्रयत्न आरंभ किया। उस दुरात्मा राक्षस की माया देखकर क्रोध में भरे हुए इरावान ने भी माया का प्रयोग आरंभ किया।


उसी समय ,नागकन्या पुत्र इरावान के मातृकुल के नागों का समूह, उसकी सहायता के लिए वहां आ पहुंचा। रणभूमि में बहुतेरे नागों से घिरे हुए इरावान ने विशाल शरीर वाले शेषनाग की भांति बहुत बड़ा रूप धारण कर लिया। तब उसने बहुत से नागों द्वारा राक्षस को आच्छादित कर दिया। तब उस राक्षसराज अलम्बुष ने कुछ सोच-विचार कर गरूड़ का रूप धारण कर लिया और समस्त नागों को भक्षण करना आरंभ किया। जब उस राक्षस ने इरावान के मातृकुल के सब नागों को भक्षण कर लिया, तब मूर्छित हुए इरावान को तलवार से मार डाला। इरावान के कमल और चंद्रमा के समान ,मस्तक को काटकर राक्षस ने धरती पर गिरा दिया।
 
इरावान को युद्धभूमि में मारा गया देख भीमसेन का पुत्र, घटोत्कच बड़े जोर से सिंहनाद करने लगा। उसने भीषण रूप धारण कर प्रज्वलित त्रिशूल हाथ में लेकर भांति-भांति के अस्त्र-शस्त्रों से संपन्न बड़े-बड़े राक्षसों के साथ आकर कौरव सेना का संहार आरंभ कर दिया। उसने दुर्योधन और द्रोणाचार्य से भीषण युद्ध किया। घटोत्कच और भीमसेन ने इसी दिन भयानक युद्ध किया। क्रोधित  भीमसेन ने उसी दिन ,धृतराष्ट्र के नौ पुत्रों का वध कर इरावान की मृत्यु का प्रतिशोध ले लिया।


यह दिन पांडवो ने इरावान को समर्पित किया। 

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