रामायण: रावण को हर रात परेशान करता था यह वानर, आखिर क्यों श्रीराम तक पहुंची शिकायत?
भगवान श्रीराम ने जब लंका पर चढ़ाई की, तब उन्होंने सुग्रीव के साथ मिलकर एक विशाल वानर सेना का गठन किया। इस सेना में कई बलशाली और पराक्रमी वानर थे। हालांकि, इनमें से कुछ वानर अत्यधिक उत्पाती भी थे, जिन्हें नियंत्रण में रखना कठिन था। इन्हीं में से एक था द्वीत या द्विविद नामक वानर, जो अपनी शरारतों के लिए कुख्यात था।
शक्तिशाली वानर द्वीत
द्वीत, जिसे द्विविद के नाम से भी जाना जाता है, एक अत्यंत बलशाली वानर था। वानरराज सुग्रीव के मंत्री मैन्द का भाई द्विविद भी अपार शक्ति का धनी था। कहा जाता है कि इन दोनों भाइयों में दस हजार हाथियों के बराबर बल था। ये दोनों किष्किंधा की एक गुफा में निवास करते थे। जब भगवान श्रीराम ने अपनी सेना का गठन किया, तो द्वीत को भी उसमें शामिल किया गया।
रावण को करने लगा परेशान
राम-रावण युद्ध के दौरान आमतौर पर रात में युद्ध नहीं होता था, लेकिन द्वीत ने अपनी उत्पात मचाने की आदत नहीं छोड़ी। वह हर रात चुपचाप लंका में प्रवेश कर जाता और रावण की शिव आराधना में बाधा डालता। इस कारण रावण बेहद परेशान हो गया।
आखिरकार, रावण ने भगवान श्रीराम को पत्र लिखकर शिकायत की कि उनकी सेना का एक वानर हर रात आकर उसकी पूजा में विघ्न डालता है। उसने यह भी कहा कि यह युद्ध के नियमों के खिलाफ है और श्रीराम से इस उत्पात को रोकने की विनती की।
श्रीराम ने द्वीत को दी चेतावनी
रावण की शिकायत पढ़ने के बाद भगवान श्रीराम ने सुग्रीव से इस बारे में जांच करने को कहा। जब श्रीराम ने ध्यान लगाया, तो उन्हें सब कुछ ज्ञात हो गया। उन्होंने द्वीत को बुलाकर समझाया कि वह अब से रात में लंका नहीं जाएगा और वहां कोई उत्पात नहीं मचाएगा।
हालांकि, द्वीत ने उनकी बात नहीं मानी। तब श्रीराम ने उसे सेना से निकालने का निर्णय लिया और उसे किष्किंधा वापस भेजने का आदेश दिया।
शत्रुता की भावना
सेना से निकाले जाने के बाद द्वीत ने किष्किंधा लौटने से इनकार कर दिया और उसने सुग्रीव और हनुमान से द्वेष पाल लिया। उसे लगा कि उन्हीं की वजह से उसकी शिकायत श्रीराम तक पहुंची थी।
बलराम ने किया द्वीत का वध
द्वीत एक दीर्घायु वानर था, इसलिए वह महाभारत काल तक जीवित रहा। इस दौरान वह नरकासुर (भौमासुर) और नकली कृष्ण (पौंड्रक कृष्ण) का मित्र बन गया। उसने महाभारत काल में बलराम और हनुमान से युद्ध भी किया था। अंततः भगवान बलराम ने इस उत्पाती वानर का वध कर दिया।
निष्कर्ष
द्वीत की कथा यह दर्शाती है कि अपार शक्ति भी अनुशासन के बिना विनाशकारी हो सकती है। उसकी उद्दंडता ने उसे पहले श्रीराम की सेना से बाहर किया और अंततः उसके जीवन का अंत बलराम के हाथों हुआ। यह प्रसंग हमें यह भी सिखाता है कि नियमों और अनुशासन का पालन करना आवश्यक है, अन्यथा परिणाम गंभीर हो सकते हैं।
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